मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत
"अरमानों की डोली"
अरमानों की डोली आई, जब से मेरे गाँव में।
पवनबसन्ती चलकर आई, गाँव-गली हर ठाँव में।।
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बने हकीकत, स्वप्न सिन्दूरी, चहका है घर-आँगन भी,
पूर्ण हो गई आस अधूरी, महका मन का उपवन भी,
कोयल गाती राग मधुर, पेड़ों की ठण्डी छाँव में।
पवनबसन्ती चलकर आई, गाँव-गली हर ठाँव में।।
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खनक रहीं हाथों में चुड़ियाँ, कंगन भरते किलकारी,
चूम रहा माथे को टीका, लटक रहे झूमर भारी,
छनक-छनक बजतीं पैजनियाँ, ठुमक-ठुमक कर पाँव में।
पवनबसन्ती चलकर आई, गाँव-गली हर ठाँव में।।
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भाभी-भाभी कहकर बहना, फूली नहीं समाती है,
नयी नवेली नया शब्द सुन, पुलकित हो हर्षाती है,
सागर से भर लाया माणिक, नाविक अपनी नाव में।
पवनबसन्ती चलकर आई, गाँव-गली हर ठाँव में।।
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ReplyDeleteबहुत मनभावन गीत