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31 December, 2013

"आँसू हैं अनमोल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक गीत
"आँसू हैं अनमोल"
आँसू हैं अनमोल, 
इन्हें बेकार गँवाना ठीक नही! 
हैं इनका कुछ मोल, 
इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही! 

हीरक वाला, हर खदान 
नही हो सकता है, 
सारे ही पाषाणों में, भगवान 
नही हो सकता है, 
बोल न कातर बोल, 
इन्हें हर वक्त मनाना ठीक नहीं! 
हैं इनका कुछ मोल, 
इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही!! 

खारे जल को, 
मत रुखसारों पर ढलकाना, 
नयनों में ठहरे, 
सिन्धु को मत छलकाना, 
खोल न देना पोल, 
अश्रु को बाहर लाना ठीक नही! 
हैं इनका कुछ मोल, 
इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही!! 

गम को गीत बनाकर, 
गाकर नही सुनाना, 
होकर के खामोश, 
सदा अन्तस् में गाना, 
दुनिया के आगे,  
रो-रोकर दुःख सुनाना ठीक नही! 
हैं इनका कुछ मोल, 
इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही!!

27 December, 2013

"मखमली लिबास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक गीत
"मखमली लिबास
मखमली लिबास आज तार-तार हो गया! 
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!  

सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में, 
क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में, 
मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया! 
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!  

भोले पंछियों के पंख, नोच रहा बाज है, 
गुम हुए अतीत को ही, खोज रहा आज है,  
शान्ति का कपोत बाज का शिकार हो गया! 
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!  

पर्वतों से बहने वाली धार, मैली हो गईं, 
महक देने वाली गन्ध भी, विषैली हो गई, 
जिस सुमन पे आस टिकी, वो ही खार हो गया! 
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!

23 December, 2013

"आगे बढ़कर देखो तो..." (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक गीत
"आगे बढ़कर देखो तो..." 
तुम मनको पढ़कर देखो तो!  
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!! 

चन्दा है और चकोरी भी, 
रेशम की सुन्दर डोरी भी, 
सपनों में चढ़कर देखो तो! 
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!! 

कुछ छन्द अधूरे से होंगे, 
अनुबन्ध अधूरे से होंगे, 
कुछ नूतन गढ़कर देखो तो! 
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!! 

सागर से मोती चुन लेना, 
माला को फिर से बुन लेना, 
लहरों से लड़कर देखो तो! 
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!

19 December, 2013

"कठिन बुढ़ापा आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक कविता
"कठिन बुढ़ापा आया"
बचपन बीता गयी जवानी, कठिन बुढ़ापा आया।
कितना है नादान मनुज, यह चक्र समझ नही पाया।

अंग शिथिल हैं, दुर्बल तन है, रसना बनी सबल है।
आशाएँ और अभिलाषाएँ, बढ़ती जाती प्रति-पल हैं।।

धीरज और विश्वास संजो कर, रखना अपने मन में।
रंग-बिरंगे सुमन खिलेंगे, घर, आंगन, उपवन में।।

यही बुढ़ापा अनुभव के, मोती लेकर आया है।
नाती-पोतों की किलकारी, जीवन में लाया है।।

मतलब की दुनिया मे, अपने कदम संभल कर धरना।
वाणी पर अंकुश रखना, टोका-टाकी मत करना।।

देख-भालकर, सोच-समझकर, ही सारे निर्णय लेना।
भावी पीढ़ी को उनका, सुखमय जीवन जीने देना।।

16 December, 2013

"नभ में काले बादल छाये" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक गीत
"नभ में काले बादल छाये"
IMG_1525बारिश का सन्देशा लाये!! 
नभ में काले बादल छाये! 
छम-छम बून्दें पड़ती जल की
कल-कल करती नभ से ढलकी
जग की प्यास बुझाने आये! 
नभ में काले बादल छाये!
IMG_1631जल से भरा धरा का कोना
हरी घास का बिछा बिछौना
खुश होकर मेंढक टर्राए! 
नभ में काले बादल छाये!
IMG_1628पेड़ स्वच्छ हैं धुले-धुले हैं
पत्ते भी उजले-उजले हैं
फटी दरारें भरने आये! 
नभ में काले बादल छाये!

12 December, 2013

"छू लो हमें.." (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत सुनिए...
अर्चना चावजी के स्वर में

"छू लो हमें.."
आप इक बार ठोकर से छू लो हमें,
हम कमल हैं चरण-रज से खिल जायेगें!
प्यार की ऊर्मियाँ तो दिखाओ जरा,
संग-ए-दिल मोम बन कर पिघल जायेंगे!!

फूल और शूल दोनों करें जब नमन,
खूब महकेगा तब जिन्दगी का चमन,
आप इक बार दोगे निमन्त्रण अगर,
दीप खुशियों के जीवन में जल जायेंगे!

प्यार की ऊर्मियाँ तो दिखाओ जरा,
संग-ए-दिल मोम बन कर पिघल जायेंगे!!

हमने पारस सा समझा सदा आपको,
हिम सा शीतल ही माना है सन्ताप को,
आप नज़रें उठाकर तो देखो जरा,
सारे अनुबन्ध साँचों में ढल जायेंगे!

प्यार की ऊर्मियाँ तो दिखाओ जरा,
संग-ए-दिल मोम बन कर पिघल जायेंगे!!

झूठा ख़त ही हमें भेज देना कभी,
आजमा कर हमें देख लेना कभी,
साज-संगीत को छेड़ देना जरा,
हम तरन्नुम में भरकर ग़ज़ल गायेंगे!

प्यार की ऊर्मियाँ तो दिखाओ जरा,
संग-ए-दिल मोम बन कर पिघल जायेंगे!!

08 December, 2013

"बदल जायेगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"बदल जायेगा"
मोम सा मत हृदय को बनाना कभी, 
रूप हर पल में इसका बदल जायेगा! 
शैल-शिखरों में पत्थर सा हो जायेगा, 
घाटियाँ देखकर यह पिघल जायेगा!! 

देगा हर एक कदम पर दगा आपको, 
सह न पायेगा  यह शीत और ताप को, 
पुण्य को देखकर यह दहल जायेगा, 
पाप को देखते ही मचल जायेगा! 
रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!! 

आइने की तरह से सजाना इसे,  
क्रूर-मग़रूर सा मत बनाना इसे, 
दिल के दर्पण में इक बार तो झाँक लो, 
झूठ और सत्य का भेद खुल जायेगा! 
रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!! 

टूटना, कांच का खास दस्तूर है, 
झुकना-मुड़ना नही इसको मंजूर है,
दिल को थाली का बैंगन बनाना नही, 
वरना यह ढाल को देख ढल जायेगा!   
रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!!

04 December, 2013

"अमलतास के झूमर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"अमलतास के झूमर"
अमलतास के झूमर की, 
आभा-शोभा न्यारी है।
मनमोहक मुस्कान तुम्हारी, 
सबको लगती प्यारी है।।

लू के गरम थपेड़े खाकर, 
रंग बसन्ती पाया है।
पीले फूलों के गजरों से, 
सबका मन भरमाया है।।

तपती गरमी में तुमने, 
अपना सौन्दर्य निखारा है।
किसके इन्तजार में तुमने, 
अपना रूप संवारा है।।

दूर गगन से सूरज दादा, 
यह सुन्दरता झाँक रहा है।
बिना पलक झपकाये, 
इन फूलों को ताक रहा है।।

अग्नि में तप कर, कुन्दन 
का रूप निखर जाता है।
तप करके प्राणी ईश्वर से ,
सिद्धी का वर पाता है।।

30 November, 2013

"मेरा बचपन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"मेरा बचपन"
जब से उम्र हुई है पचपन। 
फिर से आया मेरा बचपन।। 

पोती-पोतों की फुलवारी, 
महक रही है क्यारी-क्यारी, 
भरा हुआ कितना अपनापन। 
फिर से आया मेरा बचपन।। 
इन्हें मनाना अच्छा लगता, 
कथा सुनाना अच्छा लगता, 
भोला-भाला है इनका मन। 
फिर से आया मेरा बचपन।।  

मुन्नी तुतले बोल सुनाती, 
मिश्री कानों में घुल जाती, 
चहक रहा जीवन का उपवन। 
फिर से आया मेरा बचपन।। 
बादल जब जल को बरसाता,
गलियों में पानी भर जाता, 
गीला सा हो जाता आँगन। 
फिर से आया मेरा बचपन।। 
कागज की नौका बन जाती,
कभी डूबती और उतराती, 
ढलता जाता यों ही जीवन। 
फिर से आया मेरा बचपन।।

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