बल्ली सिंह चीमा मेरे लिए कोई नया नाम नहीं है। आज से 24-25 साल पहले इनसे मेरी मुलाकात हुई थी। उन दिनों बाबा नागार्जुन खटीमा आये हुए थे। बाबा के सम्मान में एक कविगोष्ठी आयोजित की हुई थी। उसमें बल्ली सिंह चीमा के साथ-साथ बहुत से लोग बाबा से मिलने के लिए आये थे। देखिए उस समय का एक चित्र।
आज सुबह-सुबह मेरे मित्र डॉ.सिद्धेश्वर सिंह का फोन आया कि बल्ली सिंह चीमा आये हुए हैं। आप भी आ जाइए। उनके साथ कुछ देर बैठेंगे, गप-शप करेंगे।
मैं जब डॉ. सिद्धेशवर सिंह के घर गया तो बल्ली सिंह चीमा नाश्ता कर रहे थे। मैं भी उनके साथ चाय में शामिल हो गया।
थोड़ी ही देर में खटीमा के दो कवि राजकिशोर सक्सेना और रावेन्द्र कुमार रवि भी आ गये।
अब रचनाधर्मियों की गिनती 5 हो गई तो काव्य रस तो बरसना ही था।
सबसे पहले मैंने अपनी दो रचनाओं का पाठ किया।
इसके बाद राजकिशोर सक्सेना ने अपनी कुछ कविताएँ सुनाई।
इस अवसर पर रावेन्द्र कुमार रवि ने भी अपने दो नवगीतों का पाठ किया।
तब तक मेजबान डॉ.सिद्धेश्वर सिंह की पुत्री ने उन्हें दो प्रिंट निकाल कर दे दिये। जिनमें उनकी रचनाएँ थी। उन्होंने बहुत प्रभावशाली अन्दाज़ में इन रचनाओं का पाठ किया।
इसके बाद ग़ज़ल की दुनिया के सशक्त हस्ताक्षर
कवि-शायर बल्ली सिंह चीमा ने अपनी कुछ पुरानी और कुछ ताज़ा ग़ज़लों के बेहतरीन अशआर पेश किये।
घर से बार-बार फोन आ रहा था कि क्लीनिक में रोगी इन्तजार कर रहे हैं और मैं काव्य रस के सागर में गोते लगा रहा था। मगर घर जाना तो जरूरी था इसलिए चीमा जी से बिदा ली और शाम को अपने घर आने का निमन्त्रण उन्हे दे दिया।
ठीक 5 बजे चीमा जी मेरे निवास पर पहुँचे। औपचारिकता निभाने के बाद मैंने उन्हें अपनी प्रकाशित पुस्तकों सुख का सूरज, नन्हे सुमन, धरा के रंग और हँसता गाता बचपन का सैट सप्रेम भेंट किया।
इस प्रकार मेरा आज का दिन चीमा जी के नाम रहा।