नारी की व्यथा
धरती माँ की बेटी हूँ
इसीलिए तो
सीता जैसी हूँ
मैं हूँ
कान्हा के अधरों से
गाने वाली मुरलिया,
इसीलिए तो
गीता जैसी हूँ।
मैं
मन्दालसा हूँ,
जीजाबाई हूँ
मैं
पन्ना हूँ,
मीराबाई हूँ।
जी हाँ
मैं नारी हूँ,
राख में दबी हुई
चिंगारी हूँ।
मैं पुत्री हूँ,
मैं पत्नी हूँ,
किसी की जननी हूँ
किसी की भगिनी हूँ।
किन्तु
आज लोगों की सोच
कितनी गिर गई है,
मानवता
कितनी मर गई है।
दुनिया ने मुझे
मात्र अबला मान लिया है,
और केवल
भोग-विलास की
वस्तु जान लिया है!
यही तो है मेरी कहानी,
आँचल में है दूध
और आँखों में पानी!