सूर, कबीर, तुलसी, के गीत,
सभी में निहित है प्रीत।
आज
लिखे जा रहे हैं अगीत,
अतुकान्त
सुगीत, कुगीत
और नवगीत।
जी हाँ!
हम आ गये हैं
नयी सभ्यता में,
जीवन कट रहा है
व्यस्तता में।
सूर, कबीर, तुलसी की
नही थी कोई पूँछ,
मगर
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
क्योंकि इसी से है
उनकी पूछ
या पहचान,
लेकिन
पुरातन साहित्यकारों को तो
बना दिया था
उनके साहित्य ने ही महान।
परिपूर्ण थी
उनकी लेखनी
मर्यादाओं से,
मगर
आज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!
सभी में निहित है प्रीत।
आज
लिखे जा रहे हैं अगीत,
अतुकान्त
सुगीत, कुगीत
और नवगीत।
जी हाँ!
हम आ गये हैं
नयी सभ्यता में,
जीवन कट रहा है
व्यस्तता में।
सूर, कबीर, तुलसी की
नही थी कोई पूँछ,
मगर
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
क्योंकि इसी से है
उनकी पूछ
या पहचान,
लेकिन
पुरातन साहित्यकारों को तो
बना दिया था
उनके साहित्य ने ही महान।
परिपूर्ण थी
उनकी लेखनी
मर्यादाओं से,
मगर
आज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!