मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
ग़ज़लिका
जरा सी बात में ही,
युद्ध होते हैं बहुत भारी।
जरा सी बात में ही,
क्रुद्ध होते हैं धनुर्धारी।।
जरा सी बात ही,
माहौल में विष घोल देती है।
जरा सी जीभ ही,
कड़ुए वचन को बोल देती है।।
मगर हमको नही इसका,
कभी आभास होता है।
अभी जो घट रहा कल को,
वही इतिहास होता है।।
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08 February, 2014
"जरा सी बात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच जरा सी बात को इंसान ही पहाड़ बना देता है ..
ReplyDeleteप्रकृति नहीं .. उससे हमें सीख लेनी चाहिए ..
बहुत सुन्दर ..
संग्रह के लिए हार्दिक बधाई ..
मगर हमको नही इसका,
ReplyDeleteकभी आभास होता है। sahi bat ....
सटीक बात
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सत्य कथन आपका आदरणीय सर बहुत ही उत्कृष्ट।
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति......