मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग" से
"धरती का भगवान"
सूरज चमका नील-गगन में।
फैला उजियारा आँगन में।। काँधे पर हल धरे किसान।
करता खेतों को प्रस्थान।।
मेहनत से अनाज उपजाता। यह जग का है जीवन दाता।। खून-पसीना बहा रहा है। स्वेद-कणों से नहा रहा है।। जीवन भर करता है काम। लेता नही कभी विश्राम।। चाहे सूर्य अगन बरसाये। चाहे घटा गगन में छाये।। यह श्रम में संलग्न हो रहा। अपनी धुन में मग्न हो रहा।। मत कहना इसको इन्सान। यह धरती का है भगवान।। |
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20 February, 2014
"धरती का भगवान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कल 21/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
सत्य कहा आपने.
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