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मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग" से  
एक गीत 
♥ उपवन लगे रिझाने ♥ 
मौन निमन्त्रण देतीं कलियाँ,  
सुमन लगे मुस्काने। 
वासन्ती परिधान पहन कर,  
उपवन लगे रिझाने।।  
पाकर मादक गन्ध  
शहद लेने मधुमक्खी आई, 
सुन्दर पंखोंवाली तितली 
 को सुगन्ध है भाई, 
चंचल-चंचल चंचरीक,  
आये गुंजार सुनाने। 
वासन्ती परिधान पहन कर,  
उपवन लगे रिझाने।। 
सबका तन गदराया, 
महक रहे हैं खेत बसन्ती,  
आम-नीम बौराया, 
कोयल, कागा और कबूतर  
लगे रागनी गाने। | 
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20 March, 2014
"उपवन लगे रिझाने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लेबल:
. धरा के रंग,
उपवन लगे रिझाने,
गीत
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उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteकाव्य सौदर्य से प्लावित सुन्दर कविता !
ReplyDeletelatest post कि आज होली है !
बहुत सुन्दर गीत...
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