वक्त सही हो तो सारा, संसार सुहाना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- यदि अपने घर व्यंजन हैं, तो बाहर घी की थाली है, भिक्षा भी मिलनी मुश्किल, यदि अपनी झोली खाली है, गूढ़ वचन भी निर्धन का, जग को बचकाना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- फूटी किस्मत हो तो, गम की भीड़ नजर आती है, कालीनों को बोरों की, कब पीड़ नजर आती है, कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- धूप-छाँव जैसा, अच्छा और बुरा हाल आता है, बारह मास गुजर जाने पर, नया साल आता है, खुशियाँ पा जाने पर ही अच्छा मुस्काना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- |
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04 July, 2022
गीत "संसार सुहाना लगता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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संसार सुहाना लगता है
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कलियों को फूलों का रूप पुराना लगता है .... बहुत खूबसूरत रचना ।।
ReplyDeleteसार जर्भित अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहमारे-आपके दिन बुरे हो सकते हैं लेकिन भारत के दिन अच्छे चल रहे हैं.
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