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08 March, 2015

"अन्तर्राष्ट्रीय महिलादिवस-मैं नारी हूँ...!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

नारी की व्यथा


मैं
धरती माँ की बेटी हूँ
इसीलिए तो
सीता जैसी हूँ
मैं हूँ
कान्हा के अधरों से
गाने वाली मुरलिया,
इसीलिए तो
गीता जैसी हूँ।

मैं
मन्दालसा हूँ,
जीजाबाई हूँ
मैं
पन्ना हूँ,
मीराबाई हूँ।

जी हाँ
मैं नारी हूँ,
राख में दबी हुई
चिंगारी हूँ।

मैं पुत्री हूँ,
मैं पत्नी हूँ,
किसी की जननी हूँ
किसी की भगिनी हूँ।

किन्तु
आज लोगों की सोच
कितनी गिर गई है,
मानवता
कितनी मर गई है।

दुनिया ने मुझे
मात्र अबला मान लिया है,
और केवल
भोग-विलास की
वस्तु जान लिया है!

यही तो है मेरी कहानी,
आँचल में है दूध
और आँखों में पानी!

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति…

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  2. बहुत ही सुंदर रचना।

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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  4. बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  5. इस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें

    एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_

    http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html

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  6. Thanks on your marvelous posting! I really enjoyed reading it, you’re a great author.
    http://thebusinessplace.in/packers-and-movers-pune-to-bhubaneswar

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. रूपचंद्र शास्त्री जी आपकी इस व्यथा जो कि नारी समाज से सम्बंधित है.....इसमें आपने नारी पर होने वाले आज के अत्याचार को बहुत ही रोचक तरीके से प्रदर्शित करने का प्रयास किया है......ऐसी ही व्यथाएं अब आप शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकतें हैं.....

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