नारी की व्यथा
धरती माँ की बेटी हूँ
इसीलिए तो
सीता जैसी हूँ
मैं हूँ
कान्हा के अधरों से
गाने वाली मुरलिया,
इसीलिए तो
गीता जैसी हूँ।
मैं
मन्दालसा हूँ,
जीजाबाई हूँ
मैं
पन्ना हूँ,
मीराबाई हूँ।
जी हाँ
मैं नारी हूँ,
राख में दबी हुई
चिंगारी हूँ।
मैं पुत्री हूँ,
मैं पत्नी हूँ,
किसी की जननी हूँ
किसी की भगिनी हूँ।
किन्तु
आज लोगों की सोच
कितनी गिर गई है,
मानवता
कितनी मर गई है।
दुनिया ने मुझे
मात्र अबला मान लिया है,
और केवल
भोग-विलास की
वस्तु जान लिया है!
यही तो है मेरी कहानी,
आँचल में है दूध
और आँखों में पानी!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteयथार्थ !
ReplyDeleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteइस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें
ReplyDeleteएक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
Thanks on your marvelous posting! I really enjoyed reading it, you’re a great author.
ReplyDeletehttp://thebusinessplace.in/packers-and-movers-pune-to-bhubaneswar
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteरूपचंद्र शास्त्री जी आपकी इस व्यथा जो कि नारी समाज से सम्बंधित है.....इसमें आपने नारी पर होने वाले आज के अत्याचार को बहुत ही रोचक तरीके से प्रदर्शित करने का प्रयास किया है......ऐसी ही व्यथाएं अब आप शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकतें हैं.....
ReplyDeleteसुंदर....
ReplyDeleteएक नई दिशा !
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