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29 October, 2013

"गीत गाना जानते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से

एक गीत
"गीत गाना जानते हैं"

वेदना के नीड़ को पहचानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।

दुःख से नाता बहुत गहरा रहा,
मीत इनको हम स्वयं का मानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।

हर उजाले से अन्धेरा है बंधा,
खाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।

शूल के ही साथ रहते फूल हैं,
बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।

3 comments:

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