Followers

29 September, 2022

संस्मरण "डोल गया ईमान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सरासर बे-ईमानी!

      मेरे अमर भारती आयुर्वेदिक चिकित्सालय में गठियावात की दवाई लेने के लिए खटीमा के आस-पास और पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से दूर-दूर से रोगी आते हैं। जो 1-2 महीने के लिए दवाई ले जाते हैं, जिनमें अधिकांश गरीब ही होते हैं।

      परसों 27 सितम्बर, 2022 की बात है। प्रतिदिन की भाँति आज भी नेपाल और खटीमा के आस-पास के रोगी चिकित्सालय में थे। नेपाल की एक वृद्ध महिला ने अपने लिए एक महीने की दवाई ली और अपने पड़ोसी के लिए 15 दिन की दवाई ली।

    वह अपने बैग से पेमेण्ट करने के लिए पैसे निकाल रही थी तभी उसके हाथ से 500 रुपये का नोट छूटकर नीचे फर्श पर गिर गया और वो पैसे गिनती रही। तभी एक अन्य रोगी जो समीपवर्ती स्थान नानकमत्ता से आया था। उसने जब जमीन पर पड़ा नोट देखा तो उस करोड़पति आदमी का ईमान डोल गया और वो अपने स्थान से खड़ा हो गया। धीरे से उसने नोट को आगे खिसकाया और उठाकर अपने पर्स में रख लिया।

      तभी नेपाली महिला ने शोर मचाया कि इसने मेरे पैसे उठाकर पर्स में रखे हैं। इस पर हंगामा बढ़ने लगा तो मैंने बुढ़िया को ही डाँटा और कहा कि यह करोड़पति आदमी तुम्हारे पैसे क्यों उठायेगा? इस पर महिला बहुत सारी बद्दुआ उस आदमी को देने लगी।

      तभी मेरे स्टॉफ ने आकर कहा कि सर क्या पता यह अम्मा सही बोल रही हो! 

आप सी.सी.टीवी कैमरा तो देखिए। 

      मुझे भी लगा कि कैमरा चैक करना चाहिए और मैंने जब कैमरा चैक किया तो वास्तव में बुढ़िया सही बोल रही थी। स्टाफ ने कहा कि सर कैमरा झूठ नहीं बोलता। इसी आदमी ने उसका नोट उठाया है। 

    तब उस आदमी ने अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा कि सर मैंने समझा कि मेरे पर्स से ही नोट गिरा होगा और मैंने उठा लिया।

   इससे पहले कि मैं उस बेईमान व्यक्ति को कुछ बुरा-भला कहता वह जल्दी से अपनी क सप्ताह की दवाई लेकर चलता बना।

04 July, 2022

गीत "संसार सुहाना लगता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

वक्त सही हो तो सारासंसार सुहाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।
--
यदि अपने घर व्यंजन हैंतो बाहर घी की थाली है,
भिक्षा भी मिलनी मुश्किलयदि अपनी झोली खाली है,
गूढ़ वचन भी निर्धन काजग को बचकाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।
--
फूटी किस्मत हो तोगम की भीड़ नजर आती है,
कालीनों को बोरों कीकब पीड़ नजर आती है,
कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।
--
धूप-छाँव जैसाअच्छा और बुरा हाल आता है,
बारह मास गुजर जाने परनया साल आता है,
खुशियाँ पा जाने पर ही अच्छा मुस्काना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।
--

12 June, 2022

गीत "नभ में घन का पता न पाता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सूरज आग उगलता जाता।
नभ में घन का पता न पाता।१।

जन-जीवन है अकुलाया सा,
कोमल पौधा मुर्झाया सा,
सूखा सम्बन्धों का नाता।
नभ में घन का पता न पाता।२।

सूख रहे हैं बाँध सरोवर,
धूप निगलती आज धरोहर,
रूठ गया है आज विधाता।
नभ में घन का पता न पाता।३।

दादुर जल बिन बहुत उदासा,
चिल्लाता है चातक प्यासा,
थक कर चूर हुआ उद्गाता।
नभ में घन का पता न पाता।४।

बहता तन से बहुत पसीना,
जिसने सारा सुख है छीना,
गर्मी से तन-मन अकुलाता।
नभ में घन का पता न पाता।५।

खेतों में पड़ गयी दरारें,
कब आयेंगी नेह फुहारें,
रूप न ऐसा हमको भाता।
नभ में घन का पता न पाता।६।

LinkWithin