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13 October, 2013

"बरखा हमें बुलाती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत
\"बरखा हमें बुलाती है"

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बरस रहे हैं रिम-झिम मेघा, पुरवइया गाती है।
आओ भीगें साथ-साथ हम, बरखा हमें बुलाती है।।

छम-छम पड़ती बारिश में, हम धोएँ मन के मैल सभी,
सदा प्यार से रहने की, हम सौगन्धें लें आज-अभी,
प्रेम-प्रीत का पानी पीकर, ही हरियाली आती है।
आओ भीगें साथ-साथ हम, बरखा हमें बुलाती है।।

धन-दौलत से नहीं कभी भी, प्यार खरीदा जाता है,
जिसमें कोमल भाव भरे हो, पास उन्हीं के आता है,
है अनमोल देन ईश्वर की, यह नैसर्गिक थाती है।
आओ भीगें साथ-साथ हम, बरखा हमें बुलाती है।।

फूल और काँटे जीवन भर, संग-संग ही रहते हैं,
आपस में दोनों मिल-जुलकर, अपना सुख-दुख कहते हैं,
इनकी जीवन कथा, प्रेम की सीख हमें सिखलाती है।
आओ भीगें साथ-साथ हम, बरखा हमें बुलाती है।।

1 comment:


  1. छम-छम पड़ती बारिश में, हम धोएँ मन के मैल सभी,
    सदा प्यार से रहने की, हम सौगन्धें लें आज-अभी,
    प्रेम-प्रीत का पानी पीकर, ही हरियाली आती है।
    आओ भीगें साथ-साथ हम, बरखा हमें बुलाती है।।

    सशक्त अभिव्यक्ति

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