"ऊर्जा मिलने लगी है"
कायदे से धूप अब खिलने लगी है।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
दे रहा मधुमास दस्तक, शीत भी जाने लगा,
भ्रमर उपवन में मधुर संगीत भी गाने लगा,
चटककर कलियाँ सभी खिलने लगी हैं।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
कल तलक कुहरा घना था, आज बादल छा गये,
सींचने आँचल धरा का, धुंध धोने आ गये,
पादपों पर हरितिमा खिलने लगी है।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
सब पुरातन पात पेड़ों से, स्वयं झड़ने लगे हैं,
बीनकर तिनके परिन्दे, नीड़ को गढ़ने लगे हैं,
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05 October, 2013
"ऊर्जा मिलने लगी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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. धरा के रंग,
ऊर्जा मिलने लगी है,
गीत
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नवरात्रि की शुभकामनायें गुरुवर -
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर,नवरात्रि की शुभकामनायें गुरुवर.
ReplyDeleteपात सारे धनुष बन इंद्र का ,
ReplyDeleteमीत देखो हौसले झड़ने चले हैं।
बहुत सुन्दर रचना -
कायदे से धूप अब खिलने लगी है।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
लेखनी को ऊर्जा अब,
नित नै मिलने लगी है।