कोई ख्याल नहीं है मन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
सफर चल रहा है अनजाना,
नहीं लक्ष्य है नहीं ठिकाना,
कब आयेगा समय सुहाना,
कब सुख बरसेगा आँगन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
कब गाएगी कोकिल गाने,
गूँजेंगे कब मधुर तराने,
सब बुनते हैं ताने-बाने,
कब सरसेगा सुमन चमन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
सूख रही है डाली-डाली,
नज़र न आती अब हरियाली,
सब कुछ लगता खाली-खाली,
झंझावात बहुत जीवन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
कहाँ गया वो प्यार सलोना,
काँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
यौवन जैसा “रूप” कहाँ है,
खुली हुई वो धूप कहाँ है,
प्यास लगी है, कूप कहाँ है,
खरपतवार उगी उपवन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
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SARTHAK SANDESH PRASARIT KARTI RACHNA .BADHAI
ReplyDeleteकृष्ण-जन्माष्टमी की कोटि कोटि वधाइयां !अच्छी भावाभिव्यक्ति प्रकृति उल्लेख के रूप में !
ReplyDeleteसुन्दर आदरणीय-
ReplyDeleteबधाई-