चौमासे में श्याम घटा जब आसमान पर छाती है।
आजादी के उत्सव की वो मुझको याद दिलाती है।।
देख फुहारों को उगते हैं, मेरे अन्तस में अक्षर,
इनसे ही कुछ शब्द बनाकर तुकबन्दी हो जाती है।
खुली हवा में साँस ले रहे हम जिनके बलिदानों से,
उन वीरों की गौरवगाथा, मन में जोश जगाती है।
लाठी-गोली खाकर, कारावास जिन्होंने झेला था,
वो पुख़्ता बुनियाद हमारी आजादी की थाती है।
खोल पुरानी पोथी-पत्री, भारत का इतिहास पढ़ो,
यातनाओं के मंजर पढ़कर, छाती फटती जाती है।
आओ अमर शहीदों का, हम प्रतिदिन वन्दन-नमन करें,
आजादी की वर्षगाँठ तो, एक साल में आती है।
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14 August, 2013
"आजादी की वर्षगाँठ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लाठी-गोली खाकर, कारावास जिन्होंने झेला था,
ReplyDeleteवो पुख़्ता बुनियाद हमारी आजादी की थाती है।
Kaash ,is baat ko har bhartiy smajhe.
swatntrta diwas ke avasar par bahut hi achchha geet likha hai.
सुंदर कविता ..... जय हिन्द
ReplyDeleteवीर शहीदों को नमन
अतिसुन्दर,वीर शहीदों को नमन ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
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