"कभी न भूलें सावन में"
पेंग बढ़ाकर नभ को छू लें, झूला झूलें सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। मँहगाई की मार पड़ी है, घी और तेल हुए महँगे, कैसे तलें पकौड़ी अब, पापड़ क्या भूनें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। हरियाली तीजों पर, कैसे लायें चोटी-बिन्दी को, सूखे मौसम में कैसे, अब सजें-सवाँरे सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। आँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा, रस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। |
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22 August, 2013
"कभी न भूलें सावन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत,
गीत. धरा के रंग
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ReplyDeleteआँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
रस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।।.....bahut sundar
पुरानी स्मृतियाँ ताज़ा हो गईं...वाह क्या दिन थे वो?? सच कहा आपने आज के इस महंगाई के और आपाधापी के दौर में सावन तो अब मन में ही बस कर रह गया है...बहुत सुंदर गीत...बधाई!
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