मौन निमन्त्रण देतीं कलियाँ,
सुमन लगे मुस्काने।
वासन्ती परिधान पहन कर,
उपवन लगे रिझाने।।
पाकर मादक गन्ध
शहद लेने मधुमक्खी आई,
सुन्दर पंखोंवाली तितली
को सुगन्ध है भाई,
चंचल-चंचल चंचरीक,
आये गुंजार सुनाने।
वासन्ती परिधान पहन कर,
उपवन लगे रिझाने।।
सबका तन गदराया,
महक रहे हैं खेत बसन्ती,
आम-नीम बौराया,
कोयल, कागा और कबूतर
लगे रागनी गाने।
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10 August, 2013
"उपवन लगे रिझाने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उपवन लगे रिझाने,
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पाकर मादक गन्ध
ReplyDeleteशहद लेने मधुमक्खी आई,
सुन्दर पंखोंवाली तितली
को सुगन्ध है भाई,
चंचल-चंचल चंचरीक,
आये गुंजार सुनाने।
आनुप्रासिक छटा बिखेरती सशक्त अभिव्यक्ति।
बेहतरीन उद्देश्य परक प्रस्तुति।
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