"दिवस सुहाने आने पर"
दिल से दिल मिल जाने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।
सूरज की क्या बात कहें,
चन्दा भी आग उगलता है,
साथ छोड़ जाती परछाई,
गर्दिश के दिन आने पर।
दूर-दूर से अच्छे लगते
वन-पर्वत, बहती नदियाँ,
कष्टों का अन्दाज़ा होता,
बाशिन्दे बन जाने पर।
पानी से पानी की समता,
कीचड़ दाग लगाती है,
साज और संगीत बताता,
सुर को ग़लत लगाने पर।
हर पत्थर हीरा नहीं होता, ध्यान हमेशा ये रखना, सोच-समझकर निर्णय लेना, रत्नों को अपनाने में।
जो सुख-दुख में सहभागी हों,
वो मिलते हैं किस्मत से,
स्वर्ग, नर्क सा लगने लगता,
मन का मीत न पाने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।
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18 August, 2013
"दिवस सुहाने आने पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"धरा के रंग",
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दिवस सुहाने आने पर
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बहुत ही सुंदर सार्थक और प्रस्तुती, आभार।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-