"सावन आया"
रिम-झिम करता सावन आया।
शीतल पवन सभी को भाया।।
उगे गगन में गहरे बादल,
भरा हुआ जिनमें निर्मल जल,
इन्द्रधनुष ने रूप दिखाया।
श्वेत-श्याम घन बहुत निराले,
आसमान पर डेरा डाले,
कौआ काँव-काँव चिल्लाया।
जोर-शोर से बिजली कड़की,
सहम उठे हैं लड़का-लड़की,
देख चमक सूरज शर्माया।
खेत धान से धानी-धानी,
घर मे पानी बाहर पानी,
मेघों ने पानी बरसाया।
लहरों का स्वरूप है चंगा,
मचल रहीं हैं यमुना-गंगा,
पेड़ों ने नवजीवन पाया।
झूले पड़े हुए घर-घर में,
चहल-पहल है प्रांत-नगर में,
झूल रही हैं ललिता-माया।
मोहन ने महफिल है जोड़ी,
मजा दे रही चाय-पकौड़ी,
मानसून ने मन भरमाया।
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26 August, 2013
"सावन आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सावन आया
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कृष्ण-जन्माष्टमी की अग्रिम वधाई ! मित्र आज गद्य में विचार अभिव्यक्ति को रोक नहीं पाया | दुराचार का ऐसा भीषण स्वरूप जोअध्यातं में पैठ गया है,एक ही सन्त (तथाकथित) के आचरण में पाया गया है , मन को हिला कर रख गया है |
ReplyDeleteसावन की सुन्दरता की झलकी इस रचना में बहुत ही अ
सुंदर रचना !
ReplyDeleteखेत धान से धानी-धानी,
ReplyDeleteघर मे पानी बाहर पानी,
मेघों ने पानी बरसाया।
अति सुन्दर बरसात हुई।