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04 January, 2014

"मैं कितना अभिभूत हो गया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक गीत
"मैं कितना अभिभूत हो गया"
तुमने अमृत बरसाया तो,
मैं कितना अभिभूत हो गया!
मन के सूने से उपवन में,
फिर बसन्त आहूत हो गया!

आसमान में बादल गरजा,
आशंका से सीना लरजा,
रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारें,
हरा-भरा फिर ठूठ हो गया!

चपला चम-चम चमक उठी है,
धानी धरती दमक उठी है,
खेतों में पसरी हरियाली,
मन प्रमुदित आकूत हो गया!

जब स्वदेश पर संकट आया,
सीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया!

3 comments:

  1. शुभकामनायें आदरणीय-
    खूबसूरत प्रस्तुति-

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  2. बहुत सुन्दर !
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |

    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति

    ReplyDelete
  3. तुमने अमृत बरसाया तो,
    मैं कितना अभिभूत हो गया!
    मन के सूने से उपवन में,
    फिर बसन्त आहूत हो गया!

    आसमान में बादल गरजा,
    आशंका से सीना लरजा,
    रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारें,
    हरा-भरा फिर ठूठ हो गया!

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete

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