मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
"सपनों को मत रोको"
मन की वीणा को निद्रा में,
अभिनव तार सजाने दो!
सपनों को मत रोको!
उनको सहज-भाव से आने दो!!
स्वप्न अगर मर गये,
जिन्दगी टूट जायेगी,
स्वप्न अगर झर गये,
बन्दगी रूठ जायेगी,
मजबूती से इनको पकड़ो,
कभी दूर मत जाने दो!
सपनो को मत रोको!
उनको सहज-भाव से आने दो!!
सपना इक ऐसा पाखी है,
पर जिसके हैं टूट गये,
क्षितिज उड़ानों के मन्सूबे,
उससे सारे रूठ गये,
पल-दो-पल को ही उसको,
दम लेने दो, सुस्ताने दो!
सपनो को मत रोको!
उनको सहज-भाव से आने दो!!
जीवन तो बंजर धरती है,
बर्फ यहाँ पर रुकी हुई,
मत ढूँढो इसमें हरियाली,
यहाँ फसल नही उगी हुई,
बर्फ छँटेगा, भरम हटेगा.
गर्म हवा को आने दो!
सपनो को मत रोको!
उनको सहज-भाव से आने दो!!
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16 January, 2014
"सपनों को मत रोको" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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