मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"जहाँ में प्यार ना होता"
अगर दिलदार ना होता!
जहाँ में प्यार ना होता!! न होती सृष्टि की रचना, न होता धर्म का पालन। न होती अर्चना पूजा, न होता लाड़ और लालन। अगर परिवार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! चमन में पुष्प खिलते क्यों, हठी भँवरे मचलते क्यों? महक होती हवा में क्यों, चहक होती हुमा में क्यों? अगर शृंगार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! वजन ढोता नही कोई, स्रजन होता नही कोई। फसल बोता नही कोई, शगल होता नही कोई। अगर घर-बार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! अदावत भी नही होती, बग़ावत भी नही होती। नही दुश्मन कोई होता, गिला-शिकवा नही होता। अगर गद्दार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! कोई मरता नही जीता, गरल कोई नही पीता। परम सुख-धाम पाने को, नही पढ़ता कोई गीता। अगर संसार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! |
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08 January, 2014
"जहाँ में प्यार ना होता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जहाँ में प्यार ना होता
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्यारा गीत...
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति गुरुवार को चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है |
ReplyDeleteआभार
कुछ न होता अगर प्यार न होता|
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
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