मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"आँसू हैं अनमोल"
आँसू हैं अनमोल,
इन्हें बेकार गँवाना ठीक नही! हैं इनका कुछ मोल, इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही! हीरक वाला, हर खदान नही हो सकता है, सारे ही पाषाणों में, भगवान नही हो सकता है, बोल न कातर बोल, इन्हें हर वक्त मनाना ठीक नहीं! हैं इनका कुछ मोल, इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही!! खारे जल को, मत रुखसारों पर ढलकाना, नयनों में ठहरे, सिन्धु को मत छलकाना, खोल न देना पोल, अश्रु को बाहर लाना ठीक नही! हैं इनका कुछ मोल, इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही!! गम को गीत बनाकर, गाकर नही सुनाना, होकर के खामोश, सदा अन्तस् में गाना, दुनिया के आगे, रो-रोकर दुःख सुनाना ठीक नही! हैं इनका कुछ मोल, इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही!! |
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31 December, 2013
"आँसू हैं अनमोल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मित्रो !आप को वर्ष २०१३ की विदाई के लिये वधाई! सभी के जीवन में नव वर्ष बहार बन कर आये!!
ReplyDeleteकिसी शायर ने ठीक ही कहा है-
वषर अपना ज़लल कर के, ज़लीलो ख्वार होता है |
निकल जाती है जो खुशबू, तो गुल बेकार होता है ||
नव वेश आप को परिवार स्क्हित मंगल=माय हो !!