मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
"गाँवों के जीवन की याद दिलाते हैं"
जब भी सुखद-सलोने सपने, नयनों में छा आते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं। सूरज उगने से पहले, हम लोग रोज उठ जाते थे, दिनचर्या पूरी करके हम, खेत जोतने जाते थे, हरे चने और मूँगफली के, होले मन को भाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। मट्ठा-गुड़ नौ बजते ही, दादी खेतों में लाती थी, लाड़-प्यार के साथ हमें, वह प्रातराश करवाती थी, मक्की की रोटी, सरसों का साग याद आते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। आँगन में था पेड़ नीम का, शीतल छाया देता था, हाँडी में का कढ़ा-दूध,ताकत तन में भर देता था, खो-खो और कबड्डी-कुश्ती अब तक मन भरमाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। तख्ती-बुधका और कलम, बस्ते काँधे पे सजते थे, मन्दिर में ढोलक-बाजा, खड़ताल-मँजीरे बजते थे, हरे सिंघाड़ों का अब तक, हम स्वाद भूल नही पाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। युग बदला, पहनावा बदला, बदल गये सब चाल-चलन, बोली बदली, भाषा बदली, बदल गये अब घर आंगन, दिन चढ़ने पर नींद खुली, जल्दी दफ्तर को जाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। |
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20 January, 2014
"गाँवों के जीवन की याद दिलाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सच में गाँव की याद ताज़ा कर दी आपने ...
ReplyDeleteबढ़िया है आदरणीय-
ReplyDeleteसाधुवाद-
ऐसे नज़ारे देखने पर शहर में गाँव की याद बहुत आने लगती है ..वे दिन भूले न भुलाये जाते हैं ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
हार्दिक शुभकामनायें
सुन्दर प्रस्तुति
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