मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"अमलतास के झूमर"
अमलतास के झूमर की,
आभा-शोभा न्यारी है।
मनमोहक मुस्कान तुम्हारी,
सबको लगती प्यारी है।।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
रंग बसन्ती पाया है।
पीले फूलों के गजरों से,
सबका मन भरमाया है।।
तपती गरमी में तुमने,
अपना सौन्दर्य निखारा है।
किसके इन्तजार में तुमने,
अपना रूप संवारा है।।
दूर गगन से सूरज दादा,
यह सुन्दरता झाँक रहा है।
बिना पलक झपकाये,
इन फूलों को ताक रहा है।।
अग्नि में तप कर, कुन्दन
का रूप निखर जाता है।
तप करके प्राणी ईश्वर से ,
सिद्धी का वर पाता है।।
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04 December, 2013
"अमलतास के झूमर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार गुरुवर
बहुत सुंदर रचना ! अमलतास के वासंती पीले फूल सचमुच बहुत ही मनमोहक होते हैं ! चित्र भी बहुत आकर्षक है !
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