मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"मखमली लिबास"
मखमली लिबास आज तार-तार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में,
क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में,
मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
भोले पंछियों के पंख, नोच रहा बाज है,
गुम हुए अतीत को ही, खोज रहा आज है,
शान्ति का कपोत बाज का शिकार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
पर्वतों से बहने वाली धार, मैली हो गईं,
महक देने वाली गन्ध भी, विषैली हो गई,
जिस सुमन पे आस टिकी, वो ही खार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
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27 December, 2013
"मखमली लिबास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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bahut sundar prastuti, hardik abhaar.
ReplyDeletekuch din pakle maine ek kavita likha tha, apki kavita padhkar apni kavita yaad gayi, link neeche likh rha hu....
वंदे मातरम्: प्रतिघात
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत ही सटीक रचना ....
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