मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"मेरा बचपन"
जब से उम्र हुई है पचपन।
फिर से आया मेरा बचपन।। पोती-पोतों की फुलवारी, महक रही है क्यारी-क्यारी, भरा हुआ कितना अपनापन। फिर से आया मेरा बचपन।। इन्हें मनाना अच्छा लगता, कथा सुनाना अच्छा लगता, भोला-भाला है इनका मन। फिर से आया मेरा बचपन।। मुन्नी तुतले बोल सुनाती, मिश्री कानों में घुल जाती, चहक रहा जीवन का उपवन। फिर से आया मेरा बचपन।। बादल जब जल को बरसाता, गलियों में पानी भर जाता, गीला सा हो जाता आँगन। फिर से आया मेरा बचपन।। कागज की नौका बन जाती, ढलता जाता यों ही जीवन। फिर से आया मेरा बचपन।। |
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30 November, 2013
"मेरा बचपन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुंदर रचना
ReplyDeleteबचपन में हम रहते आये ,
ReplyDeleteबचपन को कुछ कहते आये।
बहुत सुन्दर रचना है -
बचपन खुद मेरा विस्तार ,
आज समझ ले इसको यार।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteपोती-पोतों की फुलवारी,
महक रही है क्यारी-क्यारी,
भरा हुआ कितना अपनापन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
बचपन में हम रहते आये ,
बचपन को कुछ कहते आये।
बहुत सुन्दर रचना है -
बचपन खुद मेरा विस्तार ,
आज समझ ले इसको यार।
बहुत सुन्दर, वास्तव में बचपन की याद आ गयी,
ReplyDeleteयह दिन ही और होते हैं, बिन्दास, बेफिकर बहुत बहुत आभार
बहुत सुन्दर रचना है v v v nice
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