मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"क्या हो गया है?"
"क्या हो गया है?"
आज मेरे देश को क्या हो गया है?
पुष्प-कलिकाओं पे भँवरे, रात-दिन मँडरा रहे,
बागवाँ बनकर लुटेरे, वाटिका को खा रहे,
सत्य के उपदेश को क्या हो गया है?
मख़मली परिवेश को क्या हो गया है??
धर्म-मज़हब का हमारे देश में सम्मान है,
जियो-जीने दो, यही तो कुदरती फरमान है,
आज इस आदेश को क्या हो गया है?
मख़मली परिवेश को क्या हो गया है??
खोजते दैर-ओ-हरम में राम और रहमान को,
एकदेशी समझते हैं, लोग अब भगवान को,
धार्मिक सन्देश को क्या हो गया है?
मख़मली परिवेश को क्या हो गया है??
sahi me kya ho gaya hai samajh nahi aata ye vo hi desh hai jiski misalein di jati thin.
ReplyDeletehttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ शुक्रवारीय अंक ४४ दिनांक १५/११/२०१३ में आपकी इस रचना को शामिल किया हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे धन्यवाद
ReplyDeleteसच में पता नही क्या हो गया है इस देश को .... सार्थक रचना
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति !
ReplyDeleteनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ