मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"आओ चलें गाँव की ओर"
"आओ चलें गाँव की ओर"
छोड़ नगर का मोह,
आओ चलें गाँव की ओर!
मन से त्यागें ऊहापोह,
आओ चलें गाँव की ओर!
ताल-तलैय्या, नदिया-नाले,
गाय चराये बनकर ग्वाले,
जगायें अपनापन व्यामोह,
आओ चलें गाँव की ओर!
खेतों में हल लेकर जायें,
भाभी भोजन लेकर आयें,
मट्ठा बाट रहा है जोह!
आओ चलें गाँव की ओर!
चौमासे में आल्हा गायें,
बैठ डाल पर जामुन खायें,
रक्खें नही बैर और द्रोह!
आओ चलें गाँव की ओर!
sundar prastuti .aabhar
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है महोदय-
ReplyDeleteशुभकामनायें स्वीकारें-
ताल-तलैय्या, नदिया-नाले,
ReplyDeleteगाय चराये बनकर ग्वाले,
गाय "चराएं "बनकर ग्वाले
जगायें अपनापन व्यामोह,
आओ चलें गाँव की ओर!
सुन्दर भाव और बिम्ब।