मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"बादल आये रे"
जिसको अपना मधुर स्वर दिया है
अर्चना चाव जी ने...!
चौमासे में आसमान में,
घिर-घिर बादल आये रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
उनके लिए सुखद चौमासा,
पास बसे जिनके प्रियतम,
कुण्ठित है उनकी अभिलाषा,
दूर बसे जिनके साजन ,
वैरिन बदली खारे जल को,
नयनों से बरसाए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
पुरवा की जब पड़ीं फुहारें,
ताप धरा का बहुत बढ़ा,
मस्त हवाओं के आने से ,
मन का पारा बहुत चढ़ा,
नील-गगन के इन्द्रधनुष भी,
मन को नहीं सुहाए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
जिनके घर पक्के-पक्के हैं,
बारिश उनका ताप हरे,
जिनके घर कच्चे-कच्चे हैं,
उनके आँगन पंक भरे,
कंगाली में आटा गीला,
हर-पल भूख सताए रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
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15 November, 2013
"बादल आये रे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बादल आये रे
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ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रतुती
ReplyDeleteचौमासे में आसमान में,
ReplyDeleteघिर-घिर बादल आये रे!
श्याम-घटाएँ विरहनिया के,
मन में आग लगाए रे!!
बे हद की सांगीतिक रचना मीठी मीठी रोटी सी ।