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02 November, 2013

"बादल भी छँट जायेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"बादल भी छँट जायेंगे"
flower-rose-leaves-plants-thronsएकता से बढाओ मिलाकर कदम,
रास्ते हँसते-हँसते ही कट जायेंगे।
सूर्य की रश्मियों के प्रबल ताप से,
बदलियाँ और बादल भी छँट जायेंगे।

पथ है काँटों भरा, लक्ष्य भी दूर है,
किन्तु मन में लगन जिसके भरपूर है,
होशियारी से आगे बढ़ाना कदम,
फासले सारे पल भर में घट जायेंगे।

भेद और भाव मन में न लाना कभी,
रब की सन्तान ही हैं सभी आदमी,
बात करना तसल्ली से मिल-बैठकर,
प्यार से सारे मसले निबट जायेंगे।

फूल रखता नही शूल से दूरियाँ,
साथ रहना है दोनों की मजबूरियाँ,
खार रक्षा करे, गुल लुटाये महक,
सारे सन्ताप खुद ही तो हट जायेंगे।

6 comments:

  1. waah shastry ji
    jai ho aapki
    पथ है काँटों भरा, लक्ष्य भी दूर है,
    किन्तु मन में लगन जिसके भरपूर है,
    होशियारी से आगे बढ़ाना कदम,
    फासले सारे पल भर में घट जायेंगे।

    bahut khoob ..urjapoorna rachna

    DEEPAVLI ABHINANDAN !

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  2. नर्क-चतुर्दशी आप को मेरे मित्र सपरिवार शुभ हो !

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  3. काश
    जला पाती एक दीप ऐसा
    जो सबका विवेक हो जाता रौशन
    और
    सार्थकता पा जाता दीपोत्सव

    दीपपर्व सभी के लिये मंगलमय हो ……

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  4. sunder prastuti , deepawali ki subh kamnayen !

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  5. भेद और भाव मन में न लाना कभी,
    रब की सन्तान ही हैं सभी आदमी,
    बात करना तसल्ली से मिल-बैठकर,
    प्यार से सारे मसले निबट जायेंगे।
    स्नेह संस्कृति के सब रंग लिए आई दिवाली। यही इस रचना का सन्देश है।

    एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले कौन मंदे ,

    एक खुदा के सब बन्दे

    भावना लिए है यह पोस्ट। सुन्दर मनोहर।

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  6. पर्वों की यह पुण्य श्रृंखला मुबारक। यश ,सुख ,शांति आपका स्पर्श बनाये रहे।

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