आज मेरे
देश को क्या हो गया है?
मख़मली
परिवेश को क्या हो गया है??
पुष्प-कलिकाओं
पे भँवरे, रात-दिन
मँडरा रहे,
बागवाँ
बनकर लुटेरे, वाटिका को
खा रहे,
सत्य के
उपदेश को क्या हो गया है?
मख़मली
परिवेश को क्या हो गया है??
धर्म-मज़हब
का हमारे देश में सम्मान है,
जियो-जीने
दो, यही तो
कुदरती फरमान है,
आज इस
आदेश को क्या हो गया है?
मख़मली
परिवेश को क्या हो गया है??
खोजते
दैर-ओ-हरम में राम और रहमान को,
एकदेशी
समझते हैं, लोग अब
भगवान को,
धार्मिक
सन्देश को क्या हो गया है?
मख़मली
परिवेश को क्या हो गया है??
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07 May, 2014
"गीत-क्या हो गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लेबल:
. धरा के रंग,
क्या हो गया है,
गीत
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बहुत सुंदर रचना !
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