मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत
"गीत गाना जानते हैं"
वेदना की मेढ़
को पहचानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। भावनाओं पर कड़ा पहरा रहा,
दुःख से नाता बहुत गहरा रहा,,
मीत इनको हम स्वयं का मानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। रात-दिन चक्र चलता जा रहा
वक्त ऐसे ही निकलता जा रहा
खाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं। हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। शूल के ही साथ रहते फूल हैं,
एक दूजे के लिए अनुकूल हैं,
बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं। हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। |
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03 May, 2014
"गीत गाना जानते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कांटो में हंसना सीखो फूलों से, यही सीख देती सुंदर कविता।
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