मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"फिर से आया मेरा बचपन"
जब से उम्र हुई है पचपन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
पोती-पोतों की फुलवारी,
महक रही है क्यारी-क्यारी,
भरा हुआ कितना अपनापन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
इन्हें मनाना अच्छा लगता,
कथा सुनाना अच्छा लगता,
भोला-भाला है इनका मन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
मुन्नी तुतले बोल सुनाती,
मिश्री कानों में घुल जाती,
चहक रहा जीवन का उपवन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
बादल जब जल को बरसाता,
गलियों में पानी भर जाता,
गीला सा हो जाता आँगन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
कागज की नौका बन जाती,
कभी डूबती और उतराती,
ढलता जाता यों ही जीवन।
फिर से आया मेरा बचपन।।
मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"फिर से आया मेरा बचपन"
जब से उम्र हुई है पचपन।
फिर से आया मेरा बचपन।। पोती-पोतों की फुलवारी, महक रही है क्यारी-क्यारी, भरा हुआ कितना अपनापन। फिर से आया मेरा बचपन।। इन्हें मनाना अच्छा लगता, कथा सुनाना अच्छा लगता, भोला-भाला है इनका मन। फिर से आया मेरा बचपन।। मुन्नी तुतले बोल सुनाती, मिश्री कानों में घुल जाती, चहक रहा जीवन का उपवन। फिर से आया मेरा बचपन।। बादल जब जल को बरसाता, गलियों में पानी भर जाता, गीला सा हो जाता आँगन। फिर से आया मेरा बचपन।। कागज की नौका बन जाती, ढलता जाता यों ही जीवन। फिर से आया मेरा बचपन।। |
वाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबच्चों के साथ घुल मिल कर खेलना बतियाना मन को सुकून देता हैं
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