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23 September, 2013

"यही कहानी कहती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत
जिसको अपना स्वर दिया है अर्चना चाव जी ने।
"यही कहानी कहती है"
कल-कल, छल-छल करती गंगा,
मस्त चाल से बहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।

हो जाता निष्प्राण कलेवर,
जब धड़कन थम जाती हैं।
सड़ जाता जलधाम सरोवर,
जब लहरें थक जाती हैं।
चरैवेति के बीज मन्त्र को,
पुस्तक-पोथी कहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।

हरे वृक्ष की शाखाएँ ही,
झूम-झूम लहरातीं हैं।
सूखी हुई डालियों से तो,
हवा नहीं आ पाती है।
जो हिलती-डुलती रहती है,
वही थपेड़े सहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।

काम अधिक हैं थोड़ा जीवन,
झंझावात बहुत फैले हैं।
नहीं हमेशा खिलता गुलशन,
रोज नहीं लगते मेले हैं।
सुख-दुख की आवाजाही तो,
सदा संग में रहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।

2 comments:

  1. हरे वृक्ष की शाखाएँ ही,
    झूम-झूम लहरातीं हैं।
    सूखी हुई डालियों से तो,
    हवा नहीं आ पाती है।
    जो हिलती-डुलती रहती है,
    वही थपेड़े सहती है।
    श्वाँसों की सरगम की धारा,
    यही कहानी कहती है।।

    बहुत सुन्दर भाव और अर्थ लिए आई है यह रचना काव्य सौंदर्य तो है ही।

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  2. काम अधिक हैं थोड़ा जीवन,
    झंझावात बहुत फैले हैं।
    नहीं हमेशा खिलता गुलशन,
    रोज नहीं लगते मेले हैं।
    सुख-दुख की आवाजाही तो,
    सदा संग में रहती है।
    श्वाँसों की सरगम की धारा,
    यही कहानी कहती है।।
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लिखी है आपने है
    Latest post हे निराकार!
    latest post कानून और दंड

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