मन के नभ पर श्यामघटाएँ, अक्सर ही छा जाती हैं। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
निन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है, परियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं, जन्नत की मृदुगन्ध हमारे, तन-मन को महकाती है। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
दिखा दिया है कोना-कोना, घुमा-घुमाकर उपवन में, बिछा दिया है सुखद बिछौना, अरमानों के आँगन में, अब तो दिन में भी आँखों की, पलकें बन्द हो जातीं हैं। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
दबे पाँव वो आ जाती हैं, बिना किसी भी आहट के, सुन्दर सुमन खिला जाती हैं, वो अलिन्द में चाहत के, चम्पा की कलियाँ बनकर वो, मन्द-मन्द मुस्काती हैं। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
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शुभकामनायें गुरुवर-
ReplyDeleteखूबसूरत गीत
ReplyDeleteबस पढ़ते जाने का मन कर रहा है।
हार्दिक बधाई सर