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27 June, 2014

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) "पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा"

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
एक गीत
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा
कंकड़ को भगवान मान लूँ, 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा! 
काँटों को वरदान मान लूँ, 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा! 

दुर्गम पथ, बन जाये सरल सा, 
अमृत घट बन जाए, गरल का, 
पीड़ा को मैं प्राण मान लूँ. 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा!

बेगानों से प्रीत लगा लूँ, 
अनजानों को मीत बना लूँ, 
आशा को परिमाण मान लूँ, 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा!

रीते जग में  मन भरमाया, 
जीते जी माया ही माया, 
साधन को संधान मान लूँ, 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा!

3 comments:

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