मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
बादल का चित्रगीत
कहीं-कहीं छितराये बादल,
कहीं-कहीं गहराये बादल।
काले बादल, गोरे बादल,
अम्बर में मँडराये बादल।
उमड़-घुमड़कर, शोर मचाकर,
कहीं-कहीं बौराये बादल।
भरी दोपहरी में दिनकर को,
चादर से ढक आये बादल।
खूब खेलते आँख-मिचौली,
ठुमक-ठुमककर आये बादल।
दादुर, मोर, पपीहा को तो,
मेघ-मल्हार सुनाये बादल।
जिनके साजन हैं विदेश में,
उनको बहुत सताये बादल।
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वाह सुंदर ।
ReplyDeleteBahut Sunder....
ReplyDeleteबादल बरसें ... जम कर बरसें ... धरती की प्यास बुझायें ...
ReplyDeleteसुन्दर गीत शास्त्री जी ...
Wah kya baat hai.
ReplyDeleteShayad ye bhi aapko pasand aayen- Albert Einstein Quotes , Love Quotes for Him
wah sir kya baat h Prakrit ka bahut hi sunder chitral kiya h sir apne.
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दादुर मोर पपीहा को तो मेघ मल्हार सुनाये बादल, सावन का महीना और ये पंक्तियां किसी को भी मोह लेने में सक्षम, बधाई आपको आदरणीय बारम्बार
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