मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"मखमली लिबास"
मखमली लिबास आज तार-तार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में,
क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में,
मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
भोले पंछियों के पंख, नोच रहा बाज है,
गुम हुए अतीत को ही, खोज रहा आज है,
शान्ति का कपोत बाज का शिकार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
पर्वतों से बहने वाली धार, मैली हो गईं,
महक देने वाली गन्ध भी, विषैली हो गई,
जिस सुमन पे आस टिकी, वो ही खार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"मखमली लिबास"
मखमली लिबास आज तार-तार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में,
क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में,
मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
भोले पंछियों के पंख, नोच रहा बाज है,
गुम हुए अतीत को ही, खोज रहा आज है,
शान्ति का कपोत बाज का शिकार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
पर्वतों से बहने वाली धार, मैली हो गईं,
महक देने वाली गन्ध भी, विषैली हो गई,
जिस सुमन पे आस टिकी, वो ही खार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
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आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (06.06.2014) को "रिश्तों में शर्तें क्यों " (चर्चा अंक-1635)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteपर्वतों से बहने वाली धार, मैली हो गईं,
ReplyDeleteमहक देने वाली गन्ध भी, विषैली हो गई,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जिस सुमन पे आस टिकी, वो ही खार हो गया!
ReplyDeleteमनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
.... आज के बिगड़े हालातों की चिंतनपरक प्रस्तुति !!
आज के समय की कटु वास्य्विकता को बेबाकी से बयान किया है ! प्रखर रचना के लिये बधाई शास्त्री जी !
ReplyDeleteस्वार्थ में अंधा हो मनुज दनुज गया।
ReplyDeleteगागर में सागर भर दिया | आपकी कलम रूपी तलवार की तेज धार वर्तमान परिवेश पर करारा प्रहार कर रही है |
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