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01 October, 2013

"मुस्काया बसन्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत
"मुस्काया बसन्त"
बीता पतझड़ आया बसन्त।
मधुबन में मुस्काया बसन्त।।
 पेड़ों ने पाये नये वस्त्र,
पौधों ने किया सिंगार नवल,
गेहूँ के बिरुवे झूम रहे,
हँस रही बालियाँ मचल-मचल,
सबके मन को भाया बसन्त।
मधुबन में मुस्काया बसन्त।।
बासन्ती सुमनों की आभा,
दे रही प्रणय का अभिमन्त्रण,
 मधुमक्खी ने स्वीकार किया,
पुष्पों का स्नेहिल-आमन्त्रण,
खुशियों को लाया है बसन्त।
मधुबन में मुस्काया बसन्त।।
मनभावन पुष्पों पर तितली,
मतवाली होकर बैठी है,
पाकर पराग मीठा-मीठा
अपनी धुन में ही ऐंठी है,
नयनों में है छाया बसन्त।
मधुबन में मुस्काया बसन्त।।
झाड़ी के पीछे से आकर,
झाँकता भास्कर अमल-धवल,
अनुपम छवियों से भरमाते,
तालाबों में खिल रहे कमल,
तन-मन में गदराया बसन्त।
मधुबन में मुस्काया बसन्त।।

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