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28 March, 2014

"सितारे टूट गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग" से
"सितारे टूट गये हैं"
क्यों नैन हुए हैं मौन,
आया इनमें ये कौन?

कि आँसू रूठ गये हैं...!
सितारे टूट गये हैं....!!

थीं बहकी-बहकी गलियाँ,
चहकी-चहकी थीं कलियाँ,
भँवरे करते थे गुंजन,
होठों का लेते चुम्बन,
ले गया उड़ाकर निंदिया,
बदरा बन छाया कौन,
कि सपने छूट गये हैं....!
सितारे टूट गये हैं....!!

जब वो बाँहे फैलाते,
हम खुद को रोक न पाते,
बढ़ जाती थी तब धड़कन
अंगों में होती फड़कन,
खो गया हिया का चैन,
कि छाले फूट गये हैं....!
सितारे टूट गये हैं....!!

रसभरी प्रेम की बतियाँ,
हँसती-गाती वो रतियाँ,
मदमस्त हवा के झोंखे,
आने से किसने रोके,
आशिक बनकर दिन-रैन,
जवानी लूट गये हैं।
सितारे टूट गये हैं....!!

5 comments:

  1. लोग हैं बेधुरी से, टूटे सितारे की तरह !
    हैं अस्थिरअस्थिर 'थाली के पारे की तरह !!

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति !

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  3. क्यों नैन हुए हैं मौन,
    आया इनमें ये कौन? waah sundar panktiyan ...

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  4. सुन्दर बता कही है अपने ही अंदाज़ में :

    रसभरी प्रेम की बतियाँ,
    हँसती-गाती वो रतियाँ,
    मदमस्त हवा के झोंखे,
    आने से किसने रोके,
    आशिक बनकर दिन-रैन,
    जवानी लूट गये हैं।
    सितारे टूट गये हैं....!!

    ReplyDelete

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