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02 February, 2014

"बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
कहीं-कहीं छितराये बादल,
कहीं-कहीं गहराये बादल।

काले बादल, गोरे बादल,
अम्बर में मँडराये बादल। 

उमड़-घुमड़कर, शोर मचाकर,
कहीं-कहीं बौराये बादल।
भरी दोपहरी में दिनकर को,
चादर से ढक आये बादल।

खूब खेलते आँख-मिचौली,
ठुमक-ठुमककर आये बादल।
दादुर, मोर, पपीहा को तो,
मेघ-मल्हार सुनाये बादल।

जिनके साजन हैं विदेश में,
उनको बहुत सताये बादल।

3 comments:

  1. कहीं-कहीं छितराये बादल,
    कहीं-कहीं गहराये बादल।

    काले बादल, गोरे बादल,
    अम्बर में मँडराये बादल।

    उमड़-घुमड़कर, शोर मचाकर,
    कहीं-कहीं बौराये बादल।

    भरी दोपहरी में दिनकर को,
    चादर से ढक आये बादल।

    खूब खेलते आँख-मिचौली,
    ठुमक-ठुमककर आये बादल।
    दादुर, मोर, पपीहा को तो,
    मेघ-मल्हार सुनाये बादल।

    जिनके साजन हैं विदेश में,
    उनको बहुत सताये बादल।

    बहुत सुन्दर बिम्ब की खूब सूरती एवं रूपकत्व लिए है यह गीत।

    ReplyDelete
  2. खूबसूरत चित्र ओर उतेने ही खूबसूरत शब्द ... सुन्दर गीत ...

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