छवि अपनी दिखलाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!
कभी हँस पर, कभी मोर पर,
जीवन के हर एक मोड़ पर,
भटके राही का माता तुम,
पथ प्रशस्त कर जाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!
मैं हूँ मूढ़, निपट अज्ञानी,
नही जानता काव्य-कहानी,
प्रतिदिन मेरे लिए मातु तुम,
नव्य विषय को लाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!
नही जानता पूजन-वन्दन,
नही जानता हूँ आराधन,
वर्णों की माला में माता,
तुम मनके गुँथवाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!
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20 July, 2013
"मेरे काव्यसंग्रह 'धरा के रंग' से एक वन्दना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मैं हूँ मूढ़, निपट अज्ञानी,
ReplyDeleteनही जानता काव्य-कहानी,
प्रतिदिन मेरे लिए मातु तुम,
नव्य विषय को लाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!……………बिल्कुल सत्य कहा ………सब माँ की ही कृपा है।
माँ सरस्वती की कृपा बनी रहती है तो सबकुछ अच्छा होता है ....बहुत सुन्दर वंदना!
ReplyDeleteकाव्यसंग्रह 'धरा के रंग' के के प्रकाशन पर शुभकामनायें!
बहुत सुंदर वंदना,जय मां सरस्वती
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