मित्रों!
मैंने शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013 को यह पोस्ट लगाई थी!
काव्य में रुचि रखने वालों के लिए और विशेषतया कवियों के लिए तो गणों की जानकारी होना बहुत जरूरी है ।
गण आठ माने जाते हैं! १ - य - यगण २ - मा - मगण ३ - ता - तगण ४ - रा - रगण ५ - ज - जगण ६ - भा - भगण ७ - न - नगण ८ - स - सगण - सलगा इसके लिए मैं एक सूत्र को लिख रहा हूँ-
"यमाताराजभानसलगा"
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और अन्त में लिखा था कि
समय मिला तो आगामी किसी पोस्ट में
छन्दों में इनका प्रयोग भी बताऊँगा...!
तो आज इससे आगे कुछ लिखने का प्रयास किया है।
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मित्रों! काव्य में छन्दों का बहुत महत्व होता है।
छन्दों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
मात्रिक छन्द
मात्रिक छन्द वह कहलाते हैं जिनमें मात्राओं की गणना की जाती है।
वार्णिक छन्द
वार्णिक छन्द वह कहलाते हैं जिनमें वर्णों की गणना की जाती है।
मुक्त छन्द
मुक्त छन्द उन्हें कहा जाता है जिनमें मात्राओं और वर्णों की किसी भी मर्यादा का पालन करना आवश्यक नहीं होता है।
मात्रा
जिस अक्षर को बोलने में एक गुना समय लगता है वह हृस्व (लघु) माना जाता है और उसको हमI चिह्न से प्रकट करते हैं। जिस अक्षर को बोलने में दो गुना समय लगता है वह गुरू (दीर्घ) माना जाता है और उसको हम S चिह्न से प्रकट करतेहैं। यदि ह्रस्व स्वर के बाद संयुक्त वर्ण, अनुस्वार अथवा विसर्ग हो तब ह्रस्व स्वर की दो मात्राएँ गिनी जाती है । पाद का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरु मान लिया जाता है । ह्रस्व मात्रा का चिह्न ‘ ।‘ यह है और दीर्घ का‘S‘ है । जैसे ‘अत्याचार’ शब्द में कितनी मात्राएँ हैं, इसे हम इस प्रकार समझेंगे।
I S S I = 7 मात्राएँ।
चरण या पाद
छन्द के प्रायः चार चरण या पाद होते हैं। जिनको हम दो भागों में बाँट कर, सम और विषम चरणों के रूप में जान सकते हैं।
दूसरा तथा चौथा पाद या चरण सम
और प्रथम और तीसरा पाद या चरण विषम कहलाता है।
यति
छन्द को गाते समय हम जिस स्थान पर रुकते हैं या स्वराघात करते हैं उसे यति कहते हैं और इसी से पद्य की लय बनती है।
विषयान्तर में न जाते हुए अब गणों के प्रयोग पर थोड़ा सा प्रकाश डालता हूँ।
सबसे पहले सममात्रिक छन्द
चतुष्पदी सममात्रिक छन्द है-
विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा
उदाहरण - जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा मात्रा गणना ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा
इसमें मर्यादा यह है कि छन्द के प्रत्येक चरण में भगण S I I की मर्यादा को निभाया गया है।
चौपाई
चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। चौपाई में चार चरण होते हैं,प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
उदाहरण
जे गावहिं यह चरित सँभारे।
तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
सदा सुनहिं सादर नर नारी।
तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥
इसमें छन्द के प्रत्येक चरण में यगण I S S की मर्यादा को निभाया गया है।
दोहा
दोहा छन्द में चार चरण होते हैं। जिसमें विषम चरणों में 13 तथा सम चरणों में 11 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अन्त में जगण I S I का प्रयोग वर्जित माना जाता है तथा सम चरणों के अन्त में मगण I S S या यगण S S S का प्रयोग होना चाहिए।
उदाहरण-
देव भूमि में हो रहा, निर्वाचन का काम।
मैले इस तालाब में, कैसे करें हमाम।।
नवीनचन्द्र चतुर्वेदी जी ने अपने ब्लॉग “ठाले बैठे”में कुण्डलिया छन्द को कुण्डलिया में ही रचकर निम्नवत् समझाया है-
कुण्डलिया है जादुई
२११२ २ २१२ = १३ मात्रा / अंत में लघु गुरु के साथ यति छन्द श्रेष्ठ श्रीमान| २१ २१ २२१ = ११ मात्रा / अंत में गुरु लघु दोहा रोला का मिलन २२ २२ २ १११ = १३ मात्रा / अंत में लघु लघु लघु [प्रभाव लघु गुरु] के साथ यति इसकी है पहिचान|| ११२ २ ११२१ = ११ मात्रा / अंत में गुरु लघु इसकी है पहिचान, ११२ २ ११२१ = ११ मात्रा / अंत में लघु के साथ यति मानते साहित सर्जक| २१२ २११ २११ = १३ मात्रा आदि-अंत सम-शब्द, २१ २१ ११ २१ = ११ मात्रा / अंत में लघु के साथ यति साथ, बनता ये सार्थक| २१ ११२ २ २११ = १३ मात्रा लल्ला चाहे और २२ २२ २१ = ११ मात्रा / अंत में लघु के साथ यति चाहती इसको ललिया| २१२ ११२ ११२ = १३ मात्रा सब का है सिरमौर ११ २ २ ११२१ = ११ मात्रा / अंत में लघु के साथ यति छन्द प्यारे कुण्डलिया|| २१ २२ २११२ = १३ मात्रा
मित्रों!
अभी पोस्ट में बहुत कुछ लिखने को शेष है मगर आलेख का आकार अधिक न बढ़ जाये। इसलिए आगामी किसी पोस्ट में इस विषय से सम्बन्धित कुछ और जानकारी देने का प्रयास करूँगा।....
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28 April, 2013
"गणों का प्रयोग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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लीजिये सर हम भी आगये कक्षा में ....इस ज्ञान वर्धन के साथ आपने
ReplyDeleteस्कूल याद दिला दिया...बहुत उपयोगी...ज्ञानवर्धक.....
आभार....
ठीक, भारतीय पिंगल शास्त्र को इस से बल मिलेगा |
ReplyDeleteआपका यह प्रयास सराहनीय है ... बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteआभार
आपने इसके माध्यम से हमारा ज्ञानवर्धन किया है. अत्यन्त सराहनीय !
ReplyDeleteअत्यंत महत्वपूर्ण बातें बताने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
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