01 April, 2014

"सरस्वती वन्दना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग" से
"वन्दना"
रोज-रोज सपनों में आकर,
छवि अपनी दिखलाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

कभी हँस पर, कभी मोर पर,
जीवन के हर एक मोड़ पर,
भटके राही का माता तुम,
पथ प्रशस्त कर जाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

मैं हूँ मूढ़, निपट अज्ञानी,
नही जानता काव्य-कहानी,
प्रतिदिन मेरे लिए मातु तुम,
नव्य विषय को लाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

नही जानता पूजन-वन्दन,
नही जानता हूँ आराधन,
वर्णों की माला में माता,
तुम मनके गुँथवाती हो!
शब्दों का भण्डार दिखाकर,
रचनाएँ रचवाती हो!!

3 comments:

  1. माँ सरस्वती का गुणगान करती सुन्दर रचना ...
    जय माता दी ...

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  2. इसी का बरदान है कि आपकी लेखनी ज्ञान उगली रहती है.

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