मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग" से
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एक गीत
♥ दिवस सुहाने आने पर ♥
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अनजाने अपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।
सूरज की क्या बात कहें,
चन्दा जब आग उगलता हो,
साथ छोड़ जाती परछाई,
गर्दिश के दिन आने पर।
पानी से पानी की समता,
कीचड़ दाग लगाती है,
साज और संगीत अखरता,
सुर के गलत लगाने पर।
दूर-दूर से अच्छे लगते,
वन-पर्वत, बहतीं नदियाँ,
कष्टों का अन्दाज़ा होता,
बाशिन्दे बन जाने पर।
हर पत्थर हीरा नहीं होता,
पाषाणों की ढेरी में,
सोच-समझकर अंग लगाना,
रत्नों को पा जाने पर।
जो सुख-दुख में सहभागी हों,
वो किस्मत से मिलते हैं,
स्वर्ग नर्क सा लगने लगता,
मन का मीत न पाने पर।
अनजाने अपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।
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अनजाने अपने हो जाते,
ReplyDeleteदिवस सुहाने आने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।
शानदार..... रंगों का ये पर्व खूब मुबारक़ हो आपको...