वक्त सही हो तो सारा, संसार सुहाना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- यदि अपने घर व्यंजन हैं, तो बाहर घी की थाली है, भिक्षा भी मिलनी मुश्किल, यदि अपनी झोली खाली है, गूढ़ वचन भी निर्धन का, जग को बचकाना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- फूटी किस्मत हो तो, गम की भीड़ नजर आती है, कालीनों को बोरों की, कब पीड़ नजर आती है, कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- धूप-छाँव जैसा, अच्छा और बुरा हाल आता है, बारह मास गुजर जाने पर, नया साल आता है, खुशियाँ पा जाने पर ही अच्छा मुस्काना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। -- |