मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
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एक गीत
"बदल जायेगा"
मोम सा मत हृदय को बनाना कभी,
रूप हर पल में इसका बदल जायेगा! शैल-शिखरों में पत्थर सा हो जायेगा, घाटियाँ देखकर यह पिघल जायेगा!! देगा हर एक कदम पर दगा आपको, सह न पायेगा यह शीत और ताप को, पुण्य को देखकर यह दहल जायेगा, पाप को देखते ही मचल जायेगा! रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!! आइने की तरह से सजाना इसे, क्रूर-मग़रूर सा मत बनाना इसे, दिल के दर्पण में इक बार तो झाँक लो, झूठ और सत्य का भेद खुल जायेगा! रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!! टूटना, कांच का खास दस्तूर है, झुकना-मुड़ना नही इसको मंजूर है, दिल को थाली का बैंगन बनाना नही, वरना यह ढाल को देख ढल जायेगा! रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!! |
वाह , मयंक जी । आप का गीत रूप की चंचलता और मादकता को एक साथ बयान करता है ।
ReplyDeleteबढ़िया है गुरुवर
ReplyDeleteआभार आपका -
आइने की तरह से सजाना इसे,
ReplyDeleteक्रूर-मग़रूर सा मत बनाना इसे,
दिल के दर्पण में इक बार तो झाँक लो,
झूठ और सत्य का भेद खुल जायेगा!
रूप पल भर में इसका बदल जायेगा!!
सुन्दर रचना