10 August, 2013

"उपवन लगे रिझाने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से
एक गीत
"उपवन लगे रिझाने"
मौन निमन्त्रण देतीं कलियाँ, 
सुमन लगे मुस्काने।
वासन्ती परिधान पहन कर, 
उपवन लगे रिझाने।।
पाकर मादक गन्ध 
शहद लेने मधुमक्खी आई,
सुन्दर पंखोंवाली तितली
 को सुगन्ध है भाई,
चंचल-चंचल चंचरीक, 
आये गुंजार सुनाने।
वासन्ती परिधान पहन कर, 
उपवन लगे रिझाने।।
चहक रहे वन-बाग-बगीचे, 
सबका तन गदराया,
महक रहे हैं खेत बसन्ती, 
आम-नीम बौराया,
कोयल, कागा और कबूतर 
लगे रागनी गाने।
वासन्ती परिधान पहन कर, 
उपवन लगे रिझाने।।
सरसों के बिरुओं ने हैं,
पीताम्बर तन पर धारे,
मस्त पवन बह रहा
गगन में टिम-टिम करते तारे,
अंगारे से दहके रहे हैं,

वन में ढाक सुहाने।
वासन्ती परिधान पहन कर, 
उपवन लगे रिझाने।।

2 comments:

  1. पाकर मादक गन्ध
    शहद लेने मधुमक्खी आई,
    सुन्दर पंखोंवाली तितली
    को सुगन्ध है भाई,
    चंचल-चंचल चंचरीक,
    आये गुंजार सुनाने।

    आनुप्रासिक छटा बिखेरती सशक्त अभिव्यक्ति।

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  2. बेहतरीन उद्देश्य परक प्रस्तुति।

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